‘बलात्कार’, कभी आपने इस शब्द की
महिमा पर विचार किया है….. यह शब्द इस सदी के सबसे महिमावान शब्दों मे से एक है। कभी आपने गौर किया है कि….एक तरह का खीचाव है इस शब्द मे....इस शब्द को पढ़ के या सुन के ऐसे लगता है, जैसे यह शब्द आपको अपनी ओर खीचता हो। हमेशा से पुरुषों के के भीतर गज़ब का आकर्षण रहा
है इस शब्द के प्रति, अगर
आप पुरुष हैं तो इस बात को जानते होंगे। ऐसा पुरुष ढूँढना मुश्किल है जो अपने जीवन मे कभी न कभी किसी स्त्री की ‘बलात्कार’ करने की बात न सोची हो। और, अगर किसी के मर्ज़ी के खिलाफ उससे संबंध बनाने का नाम बलात्कार है तो ऐसा
पुरुष या स्त्री ढूँढना मुश्कील है जिसने कभी अपने पति या पत्नी के साथ बलात्कार न
किया हो।
पुरुषों का सारा
मज़ा जबरदस्ती मे है, ऐसे बहुत कम पुरुष मिलेंगे
जो शादी के बाद भी foreplay जारी रखते है, afterplay तो बहुत दूर की बात है....,
कौन पुरुष गरज मिट जाने के बाद फिकर करता है की उसकी शरीक-ए-विस्तर
किस हाल मे है..... मैं ऐसे कई मित्रो को जानता हूँ जिन्होनों ने मुझसे कहा है कि
उन्हे स्त्रियों या अपनी पत्नी के साथ जबरदस्ती संबंध बनाना अच्छा लगता है और उनका
ऐसा करना उनकी स्त्रियों को भी रुचता है। आज पश्चिम मे sex
orgy या group sex आम बात है। स्त्रियाँ के लिए एक पुरुषवादी(monogamy) होना अब बस पिछली सदी की बात रह गई है।
वस्तुतः सेक्स अपने
आप मे एक हिंसात्मक क्रिया है, The very act of sex is
violent’. इसी लिए तो हम सैनिको को उनकी पत्नी से दूर रखते
है, क्योंकि वो अगर अपनी हिंसा को सेक्स मे निकाल देंगे, तो फिर लड़ने मे उनका रस नहीं रह जाएगा। शायद आपने गौर नहीं किया हो, हमारे सारे हथियार का आकार पुरुष के लिंग जैसा होता
है। लेकिन, हमारे लिए हम करते क्या है
ये तो सवाल ही नहीं है,
हमारे लिए ‘शब्द’ action से जियादा महत्वपूर्ण होता है,,,,हम करते क्या है वो महवपूर्ण नहीं है, नाम क्या देते उसको, ये जियादा महत्वपूर्ण है। एक तरफ हम, घिनौना से घिनौना काम हम अच्छे शब्दो की आड़ कर
कर लेते है और दूसरी तरफ मामूली सी बात को बड़े बड़े शब्द दे कर जीवन से भी जियादा
महत्वपूर्ण बना देते है।
हमारा सारा खेल ही शब्दो का खेल हैं.....और यही खेल हमने ‘बलात्कार’ शब्द के साथ भी खेला है, ‘बलात्कार’ की घटना मे वो दंश नहीं जो ‘बलात्कार’ शब्द मे है....This word has great psychological
impact on our mind….! We have made this word 'बलात्कार' sound much bitterer, than it deserves.
किसी भी एक घटना के
लिए अपनी या किसी और की ज़िंदगी तबाह करना पागलपन है। जीवन अपने आप मे बहुत बड़ी बात है। बलात्कार की वास्तविक औकाद गुस्से मे मारे गए एक थपड़ से जियादा नहीं है। हो सकता है आपको मेरी बात समझ मे न आए, क्योंकि हमारी शिक्षा-दीक्षा ने हमरे अंदर सेक्स को लेकर एक विशेष नजरिया पैदा कर दिया है, लेकिन अगर आप शांत हो कर विचार करेंगे तो शायद
समझ मे आजाए।
मेरे ख़याल से ‘बलात्कार’ के लिए किसी व्यक्ति को
सजा देना तो निहायत ही पागलपन है। अगर कोई व्यक्ति किसी का रेप करता है तो उसमे वह समाज जिसमे उसका दिमाग परिष्कृत हुआ है, उस व्यक्ति से कहीं अधिक
जिम्मेवार है। वैसे भी सजा समाधान नहीं है, सजा से किसी भी समस्या का हल नहीं होता।
हमे जीवन को देखने के नज़रिया को बदलना होगा, अपराधियों की जगह जेल नहीं, हॉस्पिटल होनी चाहिए। उनका मनोवैज्ञानिक इलाज़ किया जाना चाहिए, और सिर्फ उन्ही लोगों का नहीं जिन्होने बलात्कार किया है बल्कि उनका भी जो ऐसा करने की सोचते है, क्योंकि जो आज सोचता है कल करेगा भी, बस मौका और थोड़ी सी हिम्मत की बात है। हमारे तथाकथित सरीफ लोग और अपराधी मे बस थोड़ी हिम्मत का फर्क होता है, बाँकी बुनियादी तौर पर दोनो एक ही थैली के चट्टे-बट्टे है।
अपराधियों को हिकारत भरी निगाह से देखने की बजाय, उनके साथ सहज और आम इंसान की भाँति पेश आने की जरूरत है, उनका साधारण रोगी की तरह मनोवैज्ञानिक इलाज़ किया जाना चाहिए।
समाज के कुछ नियमो मे भी बदलाव लाने की जरूरत है, एक से जियादा शादी करने की प्रथा को समाप्त की जानी चाहिए, प्रकृति एक पुरुष के लिए एक स्त्री को ही पैदा करता है......एक समय पर एक
से जियादा स्त्री को रखना sexual perversion को बढ़ावा देना है। अगर एक अकेला आदमी तीन स्त्री को रखेगा तो जो बाँकी के दो पुरुष हैं वो बेचारे क्या करेंगे....।
And, there is no need to have any kind of attitude towards sex, neither for
it nor against it. If you fight against nature, you are bound to go pervert. Naturally men are polygamous, and there is nothing wrong about it…..but to force people
to live with one man or woman, is ugly….and is one of the prominent cause of perversion/rape..!
अगर दो व्यक्ति एक दूसरे
से प्रेम करते है और साथ रहना चाहते है, तो उन्हे साथ रहने की पूरी स्वतंत्र मिलनी चाहिए, लेकिन किसी को भी किसी बंधन मे बांध कर किसी के साथ रहने के
लिए मजबूर करना गलत है और ये बलात्कार या दूसरे प्रकार के पाखंडो को बढ़ावा देता है
......
aapne apni heen baton ka virodhabhas kiya hai ....aap ek taraf kahte hain polygamist hona boori bat hai aur alfazon ka chand fasla chalte heen aap palti mar dete hain ...yah pathakon me asmanjas ki sthiti paida karega .....Han is bat se main sahmat hoon ki aadmi ke vikrit mansikta ke peeche uski conditioning zimmedar hai...wah samaz zimmedar hai jo betiyon se yah kahta to hai ki beti der rata bahar bat niklo ..ya aise kapde mat pahno ,you will get raped ....Likin apne beton se nahi kahta hai ki Don't rape ,Auraton ki ijzat karo ...सालों पहले औरत पिंजडे. में बंद उन परिंदों की तरह होती थीं जिन्हें स्वयतता का आसमान नसीब नहीं होता था ,आज की औरतों को आसमान तो दे दिया गया है पर उनके पंख काट लिये गये हैं....जी हां पर कटे परिन्दों की तरह हैं आज की औरतें ....कई मामलों में बेशक बहुत तरक्कियां हो गई हो पर औरतों के मामले में तब और अब का पारिद्रिश्य बहुत ज़्यादा नहीं बदला ...तब और अब के दौर में फ़र्क सिर्फ़ इतना है कि औरतों के खिलाफ़ ज़ुल्म में अब थोडी नफ़ासत है,झूठे दिलासे हैं,बराबरी की ज़गह देने के,सममान देने के झूठे वायदे हैं ....जी हां झूठे वायदे हैं अगर नहीं तो अब औरतों के दहेज़-प्रताडना के, उनके खिलाफ़ डामेस्टिक वायलेंस के ,उनके बलात्कार के किस्से अखबार के खबरों का हिस्सा नहीं बन रहे होते...२ दिन पहले मुम्बई जैसे महानगर में एक औरत को दहेज़ के लिये जला कर मार डाला गया.....
ReplyDeleteआज भी तल्खियत भरी सच्चाई यही है कि औरतें आज भी हाशिये पे है.......कैसी विडम्बना है कि मर्दों की जननी मां एक औरत, मर्दों को धन और सम्पदा देने वाली लक्ष्मी एक औरत , मर्दों को विद्या का दान देने वाली सरस्वती एक औरत , मर्दों को विजय की सौगात देने वाली श्री एक औरत और उनके ज़ुल्मों का शिकार भी वही औरत.
मैं अपनी बातें इन चंद लाइनों से खत्म करना चाहुंग कि-
नारी अब अपनी भूमिकाओं का अंत चाहती है.
कोख से कब्र तक जाने की कभी संक्षिप्त भूमिका ,
अनबुझेपन के आवरण में सिमटी नारी जब
बस नारी होने के कारण फेंक दी जाती है गटर में
या बाबूल के गलियों से निकली चार कंधों में ,
जब चार कंधों में हीं ससूराल से निकलती
एकरंगी भूमिका में नज़र आती है,
कोख से कब्र तक कि वेदनाओं से थकी नारी
अब अपनी भूमिकाओं का अंत चाहती है.