बड़ी देर से बैठा सोच रहा हूँ क्या लिखूँ, दिल कर रहा है कि कुछ नया लिखूँ, पर नया क्या ..... सूरज के नीचे ऐसा कुछ भी तो
नहीं जो पहले कभी हुआ नहीं ! सोंचता हूँ कि क्यों न मैं खुद को लिखू ,खुद को तुम से कहूँ, क्योंकि मैं मानता हूँ मेरे खुद से जियादा अभिनव और अनुपम कोई नहीं ......
मेरे बाद अगर कोई मेरी तरह अभिनव और अनुपम है तो वो ‘तुम’ हो, हम दोनों एक दूसरे के परिपूरक है न तो तुम मेरे
बिना हो सकते हो और न ही तुम्हारे बिना मेरा कोई अस्तित्व है ! और इसलिए मैं खुद को
तुमसे कहूँगा.........इससे पहले कि मैं खुद को तुम से कहूँ, तुम्हें खुद मे कुछ तब्दीलियाँ लानी होगी, अन्यथा मैं कहुगा कुछ और तुम समझोगे कुछ और ! जब
तक तुम भी खुद को मेरी तरह अनोखे नहीं जान लेते हो, हमारी बात-चीत मुश्किल है !मेरा ज़ोर यहाँ ‘जानने’ पर है न कि मानने पर, जहाँ तक मान्यता का सवाल है हम सब ने पहले से ही
खुद को खास मान रखा है,
पर सिर्फ मान लेने भर से बात नहीं बनेगी इस मान्यता को अनुभव बनाना होगा ! अगर मैं अभी खुद को तुम से कह भी दूँ तो इस बात
कि पूरी संभावना हैं कि तुम चूक जाओगे…. बात यहीं पर समाप्त नहीं होगी
इससे जियादा की भी संभावना है क्योंकि मैंने सुना है “खुदा अपनी खुदाई में जब भी आया मिट गया,
‘अनलहक़’
जिसने कहा वो बोटी-बोटी कट गया ”
पहले भी कई बार मैंने खुद को तुमसे कहने कि पूरकश
कोशिश की पर चाह कर भी खुद को तुम्हारे सामने अभिवत्क्त नहीं कर सका, हमेशा जानकारी हम दोनों के बीच चीन की दीवाल बनकर कर खड़ी हो गई !
आज मेरी गुजारिश सुनो लो, गिरा दो जानकारी की दीवाल को, थोड़ी देर के लिए बुद्धि को किनारे रख दो क्योंकि इसकी कोई जरूरत नहीं है
तुम्हें मेरे साथ कोई व्यपार नहीं करनी है ! तुम्हें मुझे जानना हैं न कि मेरे ‘बारे’ मे या फिर मुझसे वाबस्ता चीजों के बाबत । अगर मुझे अपने ‘बारे’ मे ही तुम्हें बताना होता तो फिर इतनी तैयारी करने कि कोई जरूरत ही न
थी, लेकिन नहीं मुझे आज खुद के
बारे मे नहीं, बल्कि खुद को तुमसे कहना
है !
मेरे साथ कुछ पल के लिए सहज हो जाओ, मैं तुम मैं उत्सुक हूँ न कि तुमसे जुड़ी बातों
मे, इसीलिए खुद को जितना
हल्का कर सकते हो कर लो,
जैसे हो वैसे हो जाओ,
ये अपनी जाती-प्रमाण-पत्र वगैरह को अलग रखो, जाती प्रमाण-पत्र ही क्यों सब प्रमाण-पत्रो को फाड़ के फेक दो, तुम्हें खुद को मेरे सामने किसी माध्यम के जरिये
सवित करने कि कोई जरूरत नहीं है,
सारे मुखौटों को हटा तो !
अगर तैयारी पूरी हो गई हो तो गुफ्तगू शुरू करे है
? मैं तुम्हें बता नहीं
सकता कि मैं कितना खुश हूँ ...! सच
कहता हूँ बड़ा मज़ा आएगा ! लेट्स स्टार्ट !
आँख बंद कर लेते हैं क्योंकि सब मुखौटा तो हट ही
चुका अब देखने को बचा ही क्या! साँसो को ढीला छोड़ दो, शरीर से अपनी पकड़ छोड़ दो, अंदर
चल रहे विचारों की ट्राफिक को तथस्ट हो कर बस देखो उनके साथ उलझो मत, अभी उनकी हमे कोई जरूरत नहीं है !
ये जो अदृश्य घुंघरू की खनक सुनाई दे रही है
तुम्हें यही मेरी आवाज़ है,
इसे ध्यान से सुनो, और ये जो तुम्हें शांति
की आल्हाद पूर्ण अनुभव हो रही है यही मेरी उपस्थिति है, इसे महसूस करो !
इस क्षण मे जो ‘तुम’ हो वही हूँ ‘मैं’….! हम इस अस्तित्व की अनुपम अभिव्यक्ति है, आओ इक क्षण को अस्तित्व से एक हो जाये!
आओ साथ मिल कर अपने इस अनुभव का उद्घोष करतें
है...अनलहक़ ! अनलहक़ ! अनलहक़ !!!
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