Sandeep Kumar

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Mumbai, Maharashtra, India
I am not something that happens between the maternity ward and the crematorium.

Sunday 18 March 2012

एक किलो छ: सौ ग्राम का वो मुर्गा !


                      एक किलो छ: सौ ग्राम का वो मुर्गा !
Up-beat and Off-beat…!
अगर आप किसी खूबसूरत लड़की के घुटनो पर अपना हाथ रख कर छोड़ दे, वो जल्दी ही वो भूल जायेगी की अपने अपना हाथ उसके घुटनो पर रखा है, लेकिन अगर आप उसके घुटनो को थपथपाने लगते तो she will know that you are very much there and interested in her.
हमारा ध्यान सिर्फ अप-बीट को ही नोटिस करता है, हम अंतराल, अंधेरा, नीरवता/चुप्पी या ऑफ को ignore कर देते है। हमारा mind जिसे हम conscious attention कहते है अंतराल को नोटिस नहीं करता है जबकि मजा ये है की बैगेर ऑफ-बीट के हम अप-बीट को महसूस नहीं कर सकतें है।  
Fear of unknown….!
एक किलो छ: सौ ग्राम का वो मुर्गा काटे जाने के बाद एक किलो सौ ग्राम का ही रह गया था । अभी मुंबई मे मुर्गे की कीमत 98 rupees per kg है, होली के बाद से दाम मे कुछ इज़ाफ़ा हुआ है वो हलाल-shop’ वाला बता रहा था की हर साल होली मे मुर्गो की कीमत बढ़ जाती और हमारे देश की जनसंख्या की तरह एक बार बढ़ने के बाद फिर कम नहीं होती है……चमनलाल से वकील साहेब ने पूछा, ‘चाम्मू जी आपकी उम्र कितनी है’, ‘जी मैं चालीस साल का हूँ’, ‘लेकिन दो साल पहले जब आप यहाँ आए थे, तब भी आपने अपनी उम्र चालीस साल ही बताई थी...ये मामला क्या है ?’, ‘साहेब, मड़वाडी की जुबान है एक बार जो कह दिया सो कह दिया, दो साल क्या चार साल बाद भी मैं अपनी बात पर कायम रहूँगा।                   
इस देश के लोग छिपकीली की तरह अपना रंग बदलने मे भरोसा नहीं रखते है, जो गरीब है उसको जीवन भर गरीब ही बने रहना है,,,,,,,और जो अमीर है उसके साथ भी यही मामला है चाहे लाख फजीहत होती हो अमीर बने रहने मे....पर उन्हे टीके रहना है, वो कुमार विश्वास की एक लाइन है न, “जमाने और सदी इस बदल मे हम नहीं बदले। जो जहाँ है वहीं चिपके रहना चाहता है, हाँ बात-चीत चलती रहती है बदलाब की पर हक़ीक़त यही है की हम सब बदलाब से डरते है, रवीन्द्र नाथ ने अपनी एक कविता में लिखा है कि एक आदमी बड़ी शिद्दत से भगवान को खोजने मे लगा हुआ है, वीरह मे तड़पता है, पागलों कि भाँति व्याकुल रहता है प्रभु मिलन के लिए और एक दिन जब उसकी प्रथना सुनली जाती है और पहुँचता है प्रभु के द्वार पर, अब बस द्वार को खोलने कि जरूरत थी, तो वह कुछ देर ठिठक कर द्वार को देखता है, और पैर सिर पर रख कर भाग जाता है वहाँ से, फिर सब जगह ढूँढता है पर वहाँ दुबारा नहीं जाता है।
I am a pavilion dog…..!
मैंने मन बना लिया था की आज मुझे मुर्गे को अच्छे से मरते हुए देखना है,…… उसने छुरी से मुर्गे का  गला रेता और प्लास्टिक की एक ड्राम जो ऊपर से आधी कटी थी उस मे डाल दिया, मैं ड्रम के नजीक गया और अंदर झाँक कर उसे तड़पता हुआ देखने लगा, उछल कर ड्रम के मुँह तक आ जाता था उसके सफ़ेद पंख उसी के खून से लाल हो गया था, खून के कुछ छींटे मेरे ऊपर भी आ गिरे थे, थोड़ी देर फरफरने के बाद शांत हो गया, फिर बेचने वाले ने उसके पंख उतार दिया और छोटे-छोटे टुकरे करके एक काले पोलोथीन मे डाल कर कर हमे पकड़ा दिया और हमने उसे एक सफेद थैली मे रख कर घर लेके आगए !





3 comments:

  1. पागलों कि भाँति व्याकुल रहता है प्रभु मिलन के लिए और एक दिन जब उसकी प्रथना सुनली जाती है और पहुँचता है प्रभु के द्वार पर, अब बस द्वार को खोलने कि जरूरत थी, तो वह कुछ देर ठिठक कर द्वार को देखता है, और पैर सिर पर रख कर भाग जाता है वहाँ से, ????????

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    1. मतलब, हम मंजिल को ढूँढने मे तो मज़ा लेटें है पर जब मंजिल करीब आती है तो उससे डरने लागतें है ,मुझे याद है एक टाइम पे मैं और मेरा दोस्त नासिर दिल्ली मे जॉब ढूँढ रहे थे, नासिर जॉब के लिए बहुत परेशान था। मुझे याद है, the day he got job he was not very happy, you know what he told me in bus, 'दोस्त अब कल से टाइम पर उठना पड़ेगा, मेरे ये आज़ादी भरे दिन फिर मुझे कभी दुबारा नसीब नहीं होंगे"। that day I realized , 'Nothing fails like success.'

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  2. हमारा ध्यान सिर्फ अप-बीट को ही नोटिस करता है, because we always expect more than what is going on, else we forget...

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